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Wednesday 6 February 2013

भारत का राष्ट्रीय प्रतीक


भारत का राष्ट्रीय फल आम

आम फलों का राजा कहलाता है।

यह मेग्‍नीफेरा इंडिका  का फल अर्थात आम है जो उष्‍ण कटिबंधी हिस्‍से का सबसे अधिक महत्‍वपूर्ण और व्‍यापक रूप से उगाया जाने वाला फल है।



इसका रसदार फल विटामिन ए, सी तथा डी का एक समृद्ध स्रोत है।
भारत में विभिन्‍न आकारों, मापों और रंगों के आमों की 1400 से अधिक किस्‍में पाई जाती हैं।



 आम को अनंत समय से भारत में उगाया जाता रहा है।

कवि कालीदास ने इसकी प्रशंसा में गीत लिखे हैं। अलेक्‍सेंडर ने इसका स्‍वाद चखा है और साथ ही चीनी धर्म यात्री व्‍हेन सांग ने भी।




मुगल बादशाह अकबर ने बिहार के दरभंगा में 1,00,000 से अधिक आम के पौधे रोपे थे, जिसे अब लाखी बाग के नाम से जाना जाता है।


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राष्ट्रीय पंचाँग (कैलेण्डर)


देशभर के लिए शक संवत् पर आधारित एकरूप राष्ट्रीय पंचाँग स्वीकार किया गया है, जिसका पहला महीना चैत्र है और सामान्य वर्ष 365 दिन का होता है। इसे 22 मार्च 1957 को अपनाया गया। 

राष्ट्रीय कैलेंडर शक युग चैत्र के साथ अपनी पहली महीने के रूप  में है  और  यह ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ में प्रयोग किया जाता है।

राष्ट्रीय पंचांग का आधार हिन्दी महीने होते हैं, महीने के दिनों की गणना तिथियों के अनुसार होती है। इनमें घट-बढ़  होने के कारण ही देश में मनाये जाने वाले त्यौहार भी आगे-पीछे होते रहते हैं।


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भारत का राष्ट्रीय प्रतीक सारनाथ

भारत का राष्ट्रीय प्रतीक सारनाथ जिसे 26 जनवरी 1950 में भारत सरकार द्वारा अपनाया गया ।

इसमें चार एशियाई शेर एक दूसरे के विपरीत दिशा में चारो दिशाओ की सुरक्षात्मक मुद्रा में है। इसमें केवल तीन सिंह दिखाई देते हैं और चौथा छिपा हुआ है, दिखाई नहीं देता है।



इसमें चक्र केंद्र में दिखाई देता है, सांड दाहिनी ओर और घोड़ा बायीं ओर और अन्य चक्र की बाहरी रेखा बिल्कुल दाहिने और बाई छोर पर। घंटी के आकार का कमल छोड दिया जाता है।

शब्द सत्यमेव जयते मुंडकोपनिषद से लिए गए हैं, जिसका अर्थ है केवल सच्चाई की विजय होती है, के नीचे देवनागरी लिपि में अंकित है।

सारनाथ भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में बनारस के पास है।

 भारत के प्रतीक के नीचे आदर्श वाक्य देवनागरी स्क्रिप्ट में सत्यमेव जयतेउदित हैं जिसका मतलब सत्य की सदा ही जीत होती है
महान सम्राट अशोक द्वारा 250 ईसा पूर्व में सारनाथ में बनवाया गया यह स्तम्भ दुनिया भर में प्रसिद्ध है, इसे अशोक स्तम्भ के नाम से भी जाना जाता है ।




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भारत का राष्‍ट्रीय  पक्षी

भारतीय मोर, पावों क्रिस्‍तातुस, भारत का राष्‍ट्रीय पक्षी एक रंगीन, हंस के आकार का पक्षी पंखे आकृति की पंखों की कलगी, आँख के नीचे सफेद धब्‍बा और लंबी पतली गर्दन।

इस प्रजाति का नर मादा से अधिक रंगीन होता है जिसका चमकीला नीला सीना और गर्दन होती है और अति मनमोहक कांस्‍य हरा 200 लम्‍बे पंखों का गुच्‍छा होता है।



मादा भूरे रंग की होती है, नर से थोड़ा छोटा और इसमें पंखों का गुच्‍छा नहीं होता है।

नर का दरबारी नाच पंखों को घुमाना और पंखों को संवारना सुंदर दृश्‍य होता है।




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राष्‍ट्रीय पुष्‍प

कमल (निलम्‍बो नूसीपेरा गेर्टन) भारत का राष्‍ट्रीय फूल है। यह पवित्र पुष्‍प है और इसका प्राचीन भारत की कला और गाथाओं में विशेष स्‍थान है और यह अति प्राचीन काल से भारतीय संस्‍कृति का मांगलिक प्रतीक रहा है।

धन ज्ञान और आत्मज्ञान भूल का प्रतीक है।
यह कीचड़ में खिलकर भी स्वच्छ होता है। जो दिल और मन की पवित्रता का प्रतीक है।


भारत पेड़ पौधों से भरा है। वर्तमान में उपलब्‍ध डाटा वनस्‍पति विविधता में इसका विश्‍व में दसवां और एशिया में चौथा स्‍थान है।

अब तक 70 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया गया उसमें से भारत के वनस्‍पति सर्वेक्षण द्वारा 47,000 वनस्‍पति की प्रजातियों का वर्णन किया गया है।




             

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भारत का राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम्

गीत वंदे मातरम् बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा संस्कृत एवं बंगला में 1882 में रचित प्रेरणा किया जो के स्रोत है। 

 इस गीत ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी गीत के पहले दो छंद को भारत गणराज्य के राष्ट्रीय गीत का आधिकारिक दर्जा दिया गया जो संस्कृत में है।




वंदे मातरम्‌

वंदे मातरम्‌ ।
सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्‌
शस्यश्यामलां मातरम्‌ ।

शुभ्रज्योत्‍स्‍नापुलकितयामिनीं
फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीं
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीं
सुखदां वरदां मातरम्‌ ॥
वंदे मातरम्‌ ।

कोटि-कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-कराले,
कोटि-कोटि-भुजैधृत-खरकरवाले,
अबला केन मा एत बले ।
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीं
रिपुदलवारिणीं मातरम्‌ ॥
वंदे मातरम्‌ ।

तुमि विद्या, तुमि धर्म
तुमि हृदि, तुमि मर्म
त्वं हि प्राणाः शरीरे
बाहुते तुमि मा शक्‍ति
हृदये तुमि मा भक्‍ति
तोमारई प्रतिमा गडि मन्दिरे-मन्दिरे मातरम्‌ ॥
वंदे मातरम्‌ ।

त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
कमला कमलदलविहारिणी
वाणी विद्यादायिनी, नामामि त्वाम्‌
कमलां अमलां अतुलां सुजलां सुफलां मातरम्‌ ॥
वंदे मातरम्‌ ।

श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषितां
धरणीं भरणीं मातरम्‌ ॥
वंदे मातरम्‌ ।




हिन्दी-काव्यानुवाद


तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत! हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!
जलवायु अन्न सुमधुर, फल फूल दायिनी माँ! धन धान्य सम्पदा सुख, गौरव प्रदायिनी माँ!!
शत-शत नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!


अति शुभ्र ज्योत्स्ना से, पुलकित सुयामिनी है। द्रुमदल लतादि कुसुमित, शोभा सुहावनी है।।
यह छवि स्वमन धरें हम, हे मातृभूमि भारत! तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!!
हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!


कसकर कमर खड़े हैं, हम कोटि सुत तिहारे। क्या है मजाल कोई, दुश्मन तुझे निहारे।।
अरि-दल दमन करें हम, हे मातृभूमि भारत! तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!!
हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!


तू ही हमारी विद्या, तू ही परम धरम है। तू ही हमारा मन है, तू ही वचन करम है।।
तेरा भजन करें हम, हे मातृभूमि भारत! तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!!
हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!


तेरा मुकुट हिमालय, उर-माल यमुना-गंगा। तेरे चरण पखारे, उच्छल जलधि तरंगा।।
अर्पित सु-मन करें हम, हे मातृभूमि भारत! तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!!
हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!


बैठा रखी है हमने, तेरी सु-मूर्ति मन में। फैला के हम रहेंगे, तेरा सु-यश भुवन में।।
गुंजित गगन करें हम, हे मातृभूमि भारत! तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!!
हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!


पूजा या पन्थ कुछ हो, मानव हर-एक नर है। हैं भारतीय हम सब, भारत हमारा घर है।
ऐसा मनन करें हम, हे मातृभूमि भारत! तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!!
हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!

बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा संस्कृत बाँग्ला मिश्रित भाषा में रचित

इस गीत का प्रकाशन सन् १८८२ में उनके उपन्यास आनन्द मठ में

 अन्तर्निहित गीत के रूप में हुआ







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राष्‍ट्रीय नदी

गंगा भारत की सबसे लंबी नदी है जो पर्वतों, घाटियों और मैदानों में 2,510 किलो मीटर की दूरी तय करती है।

यह हिमालय के गंगोत्री ग्‍लेशियर में भागीरथि नदी के नाम से बर्फ के पहाड़ों के बीच जन्‍म लेती है। इसमें आगे चलकर अन्‍य नदियां जुड़ती हैं, जैसे कि अलकनंदा, यमुना, सोन, गोमती, कोसी और घाघरा।

गंगा नदी का बेसिन विश्‍व के सबसे अधिक उपजाऊ क्षेत्र के रूप में जाना जाता है और यहां सबसे अधिक घनी आबादी निवास करती है तथा यह लगभग 1,000,000 वर्ग किलो मीटर में फैला हिस्‍सा है। नदी पर दो बांध बनाए गए हैं - एक हरिद्वार में और दूसरा फरक्‍का में।

गंगा नदी में पाई जाने वाली डॉलफिन एक संकटापन्‍न जंतु है, जो विशिष्‍ट रूप से इसी नदी में वास करती है।

गंगा नदी को हिन्‍दु समुदाय में पृथ्‍वी की सबसे अधिक पवित्र नदी माना जाता है। मुख्‍य धार्मिक आयोजन नदी के किनारे स्थित शहरों में किए जाते हैं जैसे वाराणसी, हरिद्वार और इलाहाबाद। गंगा नदी बंगलादेश के सुंदर वन द्वीप में गंगा डेल्‍टा पर आकर व्‍यापक हो जाती है और इसके बाद बंगाल की खाड़ी में मिलकर इसकी यात्रा पूरी होती है।




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भारत का राष्‍ट्रीय जलीय जीव

मीठे पानी की डॉलफिन भारत का राष्‍ट्रीय जलीय जीव है।
पर्यावरण और वन मंत्रालय ने राष्ट्रीय एक्वाटिक पशु के रूप में 18 मई 2010 को गंगा नदी डॉल्फिन अधिसूचित किया।


 यह स्‍तनधारी जंतु पवित्र गंगा की शुद्धता को भी प्रकट करता है, क्‍योंकि यह केवल शुद्ध और मीठे पानी में ही जीवित रह सकता है।

प्‍लेटेनिस्‍टा गेंगेटिका नामक यह मछली लंबे नोकदार मुंह वाली होती है और इसके ऊपरी तथा निचले जबड़ों में दांत भी दिखाई देते हैं। इनकी आंखें लेंस रहित होती हैं और इसलिए ये केवल प्रकाश की दिशा का पता लगाने के साधन के रूप में कार्य करती हैं।


डॉलफिन मछलियां सबस्‍ट्रेट की दिशा में एक पख के साथ तैरती हैं और छोटी मछलियों को निगलने के लिए गहराई में जाती हैं। डॉलफिन मछलियों का शरीर मोटी त्‍वचा और हल्‍के भूरे-स्‍लेटी त्‍वचा शल्‍कों से ढका होता है और कभी कभार इसमें गुलाबी रंग की आभा दिखाई देती है।
 इसके पख बड़े और पृष्‍ठ दिशा का पख तिकोना और कम विकसित होता है।
इस स्‍तनधारी जंतु का माथा होता है जो सीधा खड़ा होता है और इसकी आंखें छोटी छोटी होती है।

नदी में रहने वाली डॉलफिन मछलियां एकल रचनाएं है और मादा मछली नर मछली से बड़ी होती है। इन्‍हें स्‍थानीय तौर पर सुसु कहा जाता है क्‍योंकि यह सांस लेते समय ऐसी ही आवाज निकालती है।




इस प्रजाति को भारत, नेपाल, भूटान और बंगलादेश की गंगा, मेघना और ब्रह्मपुत्र नदियों में तथा बंगलादेश की कर्णफूली नदी में देखा जा सकता है।
नदी में पाई जाने वाली डॉलफिन भारत की एक महत्‍वपूर्ण संकटापन्‍न प्रजाति है और इसलिए इसे वन्‍य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में शामिल किया गया है।

इस प्रजाति की संख्‍या में गिरावट के मुख्‍य कारण हैं अवैध शिकार और नदी के घटते प्रवाह, भारी तलछट, बेराज के निर्माण के कारण इनके अधिवास में गिरावट आती है और इस प्रजाति के लिए प्रवास में बाधा पैदा करते हैं।







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राष्‍ट्रीय ध्‍वज

राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे में समान अनुपात में तीन क्षैतिज पट्टियां हैं: गहरा केसरिया रंग सबसे ऊपर, सफेद बीच में और हरा रंग सबसे नीचे है। ध्वज की लंबाई-चौड़ाई का अनुपात 3:2 है। सफेद पट्टी के बीच में नीले रंग का चक्र है।

शीर्ष में गहरा केसरिया रंग देश की ताकत और साहस को दर्शाता है। बीच में स्थित सफेद पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का संकेत है। हरा रंग देश के शुभ, विकास और उर्वरता को दर्शाता है।

इसका प्रारूप सारनाथ में अशोक के सिंह स्तंभ पर बने चक्र से लिया गया है। इसका व्यास सफेद पट्टी की चौड़ाई के लगभग बराबर है और इसमें 24 तीलियां हैं। भारत की संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप 22 जुलाई 1947 को अपनाया।

इसे हमारे स्‍वतंत्रता के राष्‍ट्रीय संग्राम के दौरान खोजा गया या मान्‍यता दी गई। भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज का विकास आज के इस रूप में पहुंचने के लिए अनेक दौरों में से गुजरा।




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राष्‍ट्रीय पेड़
भारतीय बरगद (फाइकस बैंगा‍लेंसिस) जिसकी शाखाएं और जड़ें एक बड़े हिस्‍से में एक नए पेड़ के समान लगने लगती हैं। जड़ों से और अधिक तने और शाखाएं बनती हैं।
 इस विशेषता और लंबे जीवन के कारण इस पेड़ को अनश्‍वर माना जाता है और यह भारत के इतिहास और लोक कथाओं का एक अविभाज्‍य अंग है।

 आज भी बरगद के पेड़ को ग्रामीण जीवन का केंद्र बिन्‍दु माना जाता है और गांव की परिषद इसी पेड़ की छाया में बैठक करती है।

Ø क्या आप जानते हैं ? बरगद की शाखाएँ जड़ की भाँती नीचे की ओर बढती हैं और धरती के संपर्क में आते ही जड़ का कार्य भी करने लगती हैं!

 इसीलिए बरगद का पेड़ अधिकांश प्रकार के जीवों के तुलनात्मक व् आध्यात्मिक दृष्टि से अनश्वर माना गया है! 

कई पेड़ों की आयु हज़ारों वर्ष भी आंकी गयी है!




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राष्‍ट्र-गान

भारत का राष्‍ट्र गान अनेक अवसरों पर बजाया या गाया जाता है। राष्‍ट्र गान के सही संस्‍करण के बारे में समय समय पर अनुदेश जारी किए गए हैं, इनमें वे अवसर जिन पर इसे बजाया या गाया जाना चाहिए

स्‍वर्गीय कवि रविन्‍द्र नाथ टैगोर द्वारा "जन गण मन" के नाम से प्रख्‍यात शब्‍दों और संगीत की रचना भारत का राष्‍ट्र गान है।

जन-गण-मन अधिनायक, जय हे
भारत-भाग्‍य-विधाता,
पंजाब-सिंधु गुजरात-मराठा,
द्रविड़-उत्‍कल बंग,
विन्‍ध्‍य-हिमाचल-यमुना गंगा,
उच्‍छल-जलधि-तरंग,
तव शुभ नामे जागे,
तव शुभ आशिष मांगे,
गाहे तव जय गाथा,
जन-गण-मंगल दायक जय हे
भारत-भाग्‍य-विधाता
जय हे, जय हे, जय हे
जय जय जय जय हे।

राष्‍ट्र गान का पूर्ण संस्‍करण निम्‍नलिखित अवसरों पर बजाया जाएगा:

Ø  नागरिक और सैन्‍य अधिष्‍ठापन;

Ø  जब राष्‍ट्र सलामी देता है

Ø  परेड के दौरान - चाहे उपरोक्‍त (ii) में संदर्भित विशिष्‍ट अतिथि उपस्थित हों या नहीं;

Ø  औपचारिक राज्‍य कार्यक्रमों और सरकार द्वारा आयोजित अन्‍य कार्यक्रमों में राष्‍ट्रपति के 
आगमन पर और सामूहिक कार्यक्रमों में तथा इन कार्यक्रमों से उनके वापस जाने के अवसर पर

Ø  ऑल इंडिया रेडियो पर राष्‍ट्रपति के राष्‍ट्र को संबोधन से तत्‍काल पूर्व और उसके पश्‍चात

Ø  राज्‍यपाल/लेफ्टिनेंट गवर्नर के उनके राज्‍य/संघ राज्‍य के अंदर औपचारिक राज्‍य कार्यक्रमों में आगमन पर तथा इन कार्यक्रमों से उनके वापस जाने के समय

Ø  जब राष्‍ट्रीय ध्‍वज को परेड में लाया जाए

Ø  जब रेजीमेंट के रंग प्रस्‍तुत किए जाते हैं

Ø  नौ सेना के रंगों को फहराने के लिए







1 comment:

Anonymous said...

great lessons